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Saturday, December 3, 2011

तेजस्विनी



पिछले दिनों देश के मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने राज्यसभा में कहा था कि भारत में 12 लाख शिक्षकों की कमी है और इसे दूर करने के लिए राज्यों को भर्ती प्रक्रिया में तेजी लानी चाहिए। सिब्बल ने कहा कि शिक्षा के व्यवसाय को बीमा, आवास और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे प्रोत्साहन देकर आकर्षक बनाने की आवश्यकता है। छत्तीसगढ़ प्रदेश और इसका स्कूल शिक्षा विभाग काफी लंबे समय से राज्य के स्कूलों में शिक्षकों की कमी से जूझ रहा है। इसे लेकर सरकारी स्कूलों में पढ़ाई को लेकर हमेशा सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। विभाग द्वारा लाख कोशिशों के बाद भी अब तक इस दिशा में कोई सकारात्मक पहल नहीं की जा सकी। वर्ग एक में ७५०० और वर्ग तीन में ६५०० पदों की भर्ती की लंबित है। इसी तरह एकीकृत शिक्षा अभियान के तहत लगभग २१ हजार शिक्षकों की भर्ती होनी है।



विद्यालयों में शिक्षकों की पर्याप्त मात्रा में पदस्थापना नहीं होने से बच्चों की पंढाई प्रभावित हो रही है । जिसका असर परीक्षा में देखने को मिलता है। स्कूलों के दावों में 600-700 छात्र छात्राओं के अध्ययनरत् होनी के बात सामने आती है जो मात्र 06-07 शिक्षकों के भरोसे पढ़ाई करते नज़र आते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बैठक ब्यवस्था कितने कमरों में होगी ।
लेकिन सवाल ये है कि क्या इससे होने वाली कमी से कैसे उबरा जाएगा। क्या उन मासूमों के भविष्य के लिए हम कुछ नहीं करेंगे ? महज़ दफ़्तरों में बैठकर कुछ प्लान और योजनाएं बनाते रहेंगे या फिर आगे बढ़कर कुछ ठोस क़दम उठाएंगे ? एक बच्चा वर्षों तक स्कूल जाता रहे और उसे महज़ उसके नाम लिखने के और कुछ ना आए तो क्या उसे शिक्षित कहेंगे या फिर केवल साक्षर भर बना देने से आपकी और हमारी ज़िम्मेदारी ख़त्म हो जाती है। दिक़्क़त ये है कि हम बस सब कुछ होता देखते रहने के आदी हो गए हैं और कभी सही – ग़लत देखने और जांचने की कोशिश ही नहीं करते। बच्चे का एडमिशन स्कूल में करवा दिया और अपनी ज़िम्मेदारी पूरी। कितने मां-बाप ये देखने की ज़हमत उठाते हैं कि उनका बच्चा स्कूल गया तो क्या पढ़ रहा है और किस तरह उसका विकास हो रहा है। वे कभी स्कूली व्यवस्था को जानने की कोशिश ही नहीं करते। क्या इस तरह हम अपने बच्चे को एक बेहतर भविष्य दे पाएंगे ?



बस कुछ इसी तरह की समस्या को उठाएगी ‘तेजस्विनी’ इस रविवार के एपिसोड में। जहां कुछ प्रभावशाली लोगों की सरपरस्ती में महज़ दो शिक्षकों के भरोसे स्कूल चल रहा है और बच्चे पांच क्लास पढ़ने के बावजूद ना लिख पाते है और ना ही पढ़ना सिख पाते हैं। दिक्क़त ये है कि कोई आवाज़ ही नहीं उठाता इस सब के ख़िलाफ और जब आवाज़ उठाई जाती है तो उसे सुना भी जाता है।



विस्तार से देखने के लिए देखें छत्तीसगढ़ का पहला फिक्शन धारावाहिक “तेजस्विनी” रायपुर दूरदर्शन पर हर रविवार शाम 06:30 बजे।



रवीन्द्र गोयल