लेकिन सवाल ये है कि क्या इससे होने वाली कमी से कैसे उबरा जाएगा। क्या उन मासूमों के भविष्य के लिए हम कुछ नहीं करेंगे ? महज़ दफ़्तरों में बैठकर कुछ प्लान और योजनाएं बनाते रहेंगे या फिर आगे बढ़कर कुछ ठोस क़दम उठाएंगे ? एक बच्चा वर्षों तक स्कूल जाता रहे और उसे महज़ उसके नाम लिखने के और कुछ ना आए तो क्या उसे शिक्षित कहेंगे या फिर केवल साक्षर भर बना देने से आपकी और हमारी ज़िम्मेदारी ख़त्म हो जाती है। दिक़्क़त ये है कि हम बस सब कुछ होता देखते रहने के आदी हो गए हैं और कभी सही – ग़लत देखने और जांचने की कोशिश ही नहीं करते। बच्चे का एडमिशन स्कूल में करवा दिया और अपनी ज़िम्मेदारी पूरी। कितने मां-बाप ये देखने की ज़हमत उठाते हैं कि उनका बच्चा स्कूल गया तो क्या पढ़ रहा है और किस तरह उसका विकास हो रहा है। वे कभी स्कूली व्यवस्था को जानने की कोशिश ही नहीं करते। क्या इस तरह हम अपने बच्चे को एक बेहतर भविष्य दे पाएंगे ?
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You can send your resume at : jbcfilm@gmail.com
Saturday, December 3, 2011
तेजस्विनी
लेकिन सवाल ये है कि क्या इससे होने वाली कमी से कैसे उबरा जाएगा। क्या उन मासूमों के भविष्य के लिए हम कुछ नहीं करेंगे ? महज़ दफ़्तरों में बैठकर कुछ प्लान और योजनाएं बनाते रहेंगे या फिर आगे बढ़कर कुछ ठोस क़दम उठाएंगे ? एक बच्चा वर्षों तक स्कूल जाता रहे और उसे महज़ उसके नाम लिखने के और कुछ ना आए तो क्या उसे शिक्षित कहेंगे या फिर केवल साक्षर भर बना देने से आपकी और हमारी ज़िम्मेदारी ख़त्म हो जाती है। दिक़्क़त ये है कि हम बस सब कुछ होता देखते रहने के आदी हो गए हैं और कभी सही – ग़लत देखने और जांचने की कोशिश ही नहीं करते। बच्चे का एडमिशन स्कूल में करवा दिया और अपनी ज़िम्मेदारी पूरी। कितने मां-बाप ये देखने की ज़हमत उठाते हैं कि उनका बच्चा स्कूल गया तो क्या पढ़ रहा है और किस तरह उसका विकास हो रहा है। वे कभी स्कूली व्यवस्था को जानने की कोशिश ही नहीं करते। क्या इस तरह हम अपने बच्चे को एक बेहतर भविष्य दे पाएंगे ?
Saturday, October 1, 2011
औरत टोनही नहीं : तेजस्विनी
Saturday, September 24, 2011
सड़कों पर घूमते पशु-दुर्घटना को न्यौता : तेजस्विनी
कमाएं आप और भुगते दूसरे...? नहीं चलेगा : तेजस्विनी
Wednesday, September 21, 2011
अन्याय के खिलाफ़ चुप ना रहो, हल्ला बोलो : तेजस्विनी
छत्तीसगढ! एक नया प्रदेश जिसे अस्तित्व में आए महज़ 11 साल हुए हैं लेकिन इस छोटे से वक्फ़े में प्रदेश ने विकास के हर क्षेत्र में एक लम्बी छलांग लगाई है और नि:संदेह अपना एक नया मुक़ाम बनाया है। ज़ाहिर है मनोरंजन क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा है। छत्तीसगढ़ी फिल्मों का बाज़ार, आज एक उद्योग की शक्ल लेता जा रहा है और दिन दूनी-रात चौगुनी तरक्क़ी कर रहा है। इन सबके बीच टेलिविज़न प्रदेश की जनता के मनोरंजन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।
तमाम आंकडों के मुताबिक आज देश के 90 % परिवार टेलिविज़न देखते हैं और प्रदेश में भी स्थिति बहुत ज़्यादा अलग नहीं है। ज़ाहिर है शहरों और प्रमुख इलाकों में तमाम निजी चैनल अपनी पहुंच बना चुके हैं, लेकिन तमाम दूसरे क्षेत्रों/ गांवों एवं दूरस्थ इलाकों में आज भी दूरदर्शन ही मनोरंजन का प्रमुख साधन है। कुछ आंकडों एवं एक अनुमान के मुताबिक आज भी प्रदेश की 60 फीसदी से अधिक आबादी दूरदर्शन ही देखती है, और ना केवल देखती है बल्कि बेसब्री से इंतज़ार करती है। इसी चैनल के द्वारा रायपुर दूरदर्शन की ओर से शुरू किया जा रहा है एक नया धारावाहिक “तेजस्विनी”।
“तेजस्विनी” के माध्यम से हम इन सब बातों, जानकारियों और अधिकारों के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। इसका तरीका उपदेशात्मक ना होकर बहुत ही मनोरंजक, सहज और सरल होगा। जो आम आदमी की दिनचर्या से मिलता-जुलता होगा। “तेजस्विनी” दरअसल कहानी है एक महिला की जो अपने अधिकारों, कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियों के प्रति ना केवल जागरुक है बल्कि संवेदनशील भी है। वो हमेशा अन्याय के खिलाफ खुद तो आवाज़ बुलंद करती ही है साथ ही लोगों को आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित करती है।
“तेजस्विनी” धारावाहिक हर सप्ताह एक अलग समस्या को उठाएगा और उन्हें अपनी मदद खुद करने का संदेश देगा। धारावाहिक की नायिका तेजस्विनी, हमेशा इसी बात को दोहराती है कि “जो लोग ख़ुद अपनी मदद नहीं करते, अपने हक के लिए आवाज़ नहीं उठाते, अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते, अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन नहीं करते, उनका कुछ नहीं हो सकता। भगवान भी उनकी मदद नहीं कर सकता। यह स्वभाविक मानव प्रवृति है कि अगर आप अन्याय के खिलाफ चुप रहोगे, तो लोग ज़ुल्म करते रहेंगे लेकिन जब आप हल्ला बोलेंगे तो अत्याचारी भाग खडे होंगे”।
तेजस्विनी, कोई नेता, अभिनेत्री या समाज सुधारिका नहीं है बल्कि एक आम गृहिणी है जो किसी भी दूसरी गृहिणी की तरह अपनी बिटिया और पति का ख़्याल रखती है। वो भी खुश होती है, नाराज़ होती है तथा वक्त पड़ने पर इस नाराज़गी और गुस्से को ज़ाहिर भी करती है। कहना गलत ना होगा कि तेजस्विनी, ज़िंदगी के छोटे-छोटे पलों में भी, खुशियां ढूंढती है और सही मायनों में ज़िंदगी को, जीती है।
तेजस्विनी, की एक छोटी से बिटिया है ‘पाखी’ और पति ‘अनुपम’, जो उसे हर क़दम पर आगे बढने में सहयोग करते हैं और ज़रूरत पड़ने पर हर संभव मदद करते हैं। धारावाहिक में “तेजस्विनी” की भूमिका निभाई है छत्तीसगढ की जानीमानी अभिनेत्री अंशुदास ने। अंशुदास, ना केवल छत्तीसगढ़ी फिल्मों और वीडियो एलबम का एक चिर-परिचित नाम है बल्कि रंगमंच में भी निरंतर सक्रिय है। तेजस्विनी के पति, अनुपम वर्मा के किरदार में एक नए युवा अभिनेता सागर कुमार हैं। जो रंगमंच में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं और आज भी सक्रिय हैं। तेजस्विनी की बेटी, पाखी की भूमिका निभाने वाली बालिका, उमंग रामचंदानी ने पहली बार अभिनय किया है लेकिन हमें मानने पर मजबूर कर दिया है कि प्रतिभा लोगों में जन्मजात होती है।
छत्तीसगढ़ी फिल्मों के मशहूर चरित्र कलाकार बलराज पाठक, डोमार सिंह ठाकुर, तारेन चंद्राकर, नुपुर चंद्राकर, लक्ष्मी बाणी, उदिति सिद्धू, सिमरन, पूजा साहू, काजल, रमाकांत नागपुरे, अजय निर्मलकर, ग़ौरव सिंह, चंदन सिंह, मोहम्मद वसीम, मोहम्मद इम्तियाज़, शन्नो खान, सुरेश, प्रीति, सुमन पांडे, मेण्डी, नीतेश लहरी, गुड्डू त्रिपाठी, नीरज, सुभाष धनकर, भूपेन चंदनिया, मनोज विश्वकर्मा, हिमांशु, अभिषेक, अतीक़ खान, सूरज ठाकुर, विशेष विद्रोही, संदीप, नत्थू, दीप्ति, नवीन जैसे कलाकारों ने भी इस धारावाहिक में प्रमुख भूमिकाओं को निभाया है।
यहां विशेष तौर पर यह भी बताना ज़रूरी है कि समाज, पत्रकारिता और प्रशासन से जुडे कुछ विशिष्ट लोगों ने भी इस धारावाहिक में कुछ प्रमुख भूमिकाओं को सजीव किया है जिसके लिए हम उनके आभारी हैं। इनमें प्रमुख हैं पाठ्य पुस्तक निगम के महाप्रबंधक सुभाष मिश्रा, कॉरपोरेट जगत में काम करने वाले सुयश शुक्ला, डॉक्टरी पेशे से जुड़े डॉ. राजेश त्रिवेदी, डॉ. पटेल, पत्रकारिता से जुडें आबिद अली और भरत योगी इत्यादि, जिन्होने अपने व्यस्त समय में से समय निकालकर अपना सहयोग दिया और साबित किया कि हर इंसान में एक कलाकार छिपा होता है, चाहे पेशे से वो किसी भी व्यवसाय से जुड़ा हो।
धारावाहिक के संवाद और पटकथा लेखन की ज़िम्मेदारी निभाई है ग़ुलाम हैदर ने और कलाकारों को रंग रूप दिया है मेकअप कलाकार- चंदू, लॉरेंस फ्रेंसिस और शन्नो खान ने तथा छत्तीसगढ़ के बेहतरीन लोकेशन एवं कार्यक्रम के दूसरे दृश्यों को दीपक बावनकर ने कैमरे में क़ैद किया है। ख़ूबसूरत दृश्यों को क्रमबद्ध, एक अर्थवान सूत्र में दृश्य संपादक, ए. मिश्रा ने बांधा है।
जे. बी. कम्युनिकेशन द्वारा बनाए जा रहे इस धारावाहिक की निर्माता है, लता गोयल। श्रीमति गोयल इससे पहले दर्जनों डॉक्युमेंटरी, स्पॉट, कमर्शियल और कॉर्पोरेट फ़िल्मों का निर्माण एवं निर्देशन कर चुकी हैं।
धारावाहिक का निर्देशन रवीन्द्र गोयल ने किया है जो इससे पहले विभिन्न टेलिविज़न चैनलों के लिए समसामयिक धारावाहिकों का निर्माण एवं निर्देशन कर चुके हैं रवीन्द्र पत्रकारिता से पहले लंबे समय तक रंगमंच और फ़िल्मों से जुड़े रहे हैं एवं सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं।